Saturday, June 25, 2011

बेवजह ही सही

बेवजह बाते ..........बाते ही नहीं जीवन में भी कई किस्से शायद बेवजह ही होते है , या शायद हमे उसके होने की कोई वजह समझ नहीं आती . जब तक सब अच्छा होता है तब तक हम खुश होते है और बुरा होते ही सोचते है की ये क्यों हुआ . ये ज़िन्दगी भी तो कई कई रास्तो से होकर जाती है कुछ रास्ते आप चुनते है कुछ आपको थमा दिए जाते है ,और उन रास्तो पे थोडा सा आगे आने पर पीछे जाने की रस्ते बंद हो जाते है और फिर हमे उन्ही रास्तो पे अपनी खुशिया ढूंढनी पड़ती है . दिल कितना भी रोये चेहरे पे ख़ुशी लानी पड़ती है ,प्यार जितनी ख़ुशी देता है उससे कही ज्यादा गम दे जाता है . वक़्त हमे बहुत कुछ सिखा देता है शायद हर तरीके से जीना सिखाता है पर हम सीखना नै चाहते .....या उस हकीक़त को क़ुबूल नहीं कर पाते .तब वो दिल में दर्द बन की बैठ जाता है.



आपकी चाहत आपको न मिले उसका भी दर्द होता है और वक़्त उसे भर भी देता है .....नए रास्ते भी मिल जाते है फिर अचानक एक पगडण्डी आपको वाही वापिस ले अति है जहा आप पहले कभी थे ,चमक आँखों में आ जाती है लेकिन पगडण्डी इ तो है और वो किसी दुसरे रस्ते में मिल की खो जाती है जहा आप चाह कर भी नहीं जा सकते . कुछ छोटी खुशियों को समेत के अपने रस्ते में आप फिर चलने लगते है पर कुछ देर मिली छाव , एक मजबूत दरख़्त पे टिकना याद रहता है .

जब हमें किसी की सबसे ज्यादा जरुरत होती है वो तभी साथ छोड़ देता है फिर उसका साथ हमे मिलता ही क्यों है ...शायद कुछ और दर्द देने के लिए .

कहते है की आगे छलांग लगाने के लिए पीछे हटना पड़ता है , पर पीछे जाने पे अगर पैरों में जंजीर बंद दी जाये तो कोई कैसे कूद सकता है ?

अँधेरा घना हो जाये तो समझो सवेरा होने को है .......पर ये अँधेरा कुछ ज्यादा दिनों तक रह जाये तो सवेरे की गुंजाईश कम होने लगती है ......कुछ नहीं रुकेगा कोई ए कोई जाये ....दुःख आते है और चले जाते है और अगर टिक भी गये तो हम उन्ही के साथ जीना सीख जाते है . जीना भी बेवजह सा ही तो लगने लगता है न कभी न कोई मकसद न कोई उत्साह ....फिर अचानक ये सर झटक के उठ जाते है और सोचते है जो सो हो गया अब आगे की सोचो .......जो पास है उसे खूबसूरत बनाओ

वक़्त आज साथ नहीं है तो क्या , हमेशा तो एसा नहीं होगा न

Sunday, May 8, 2011

माँ

         



कल मातृत्व दिवस है, और इस वक़्त रात का एक बज रहा है ...इस हिसाब से तो ८ मई हो गयी . अपनी माँ को याद करने का एक दिन , एक ख़ास दिन . आज हम खुद दो बच्चो की माँ है पर आज भी जब कोई समस्या अति है या दिल भरी होता है तो माँ की अलावा और कोई नहीं याद आता. बचपन से लेकर बड़े होने तक हर सपना माँ से बताया , हर सपने पे वो मुस्कुरा देती थी जैसे उसे उन सपनो के पुरे होने का आभास था पर कुछ बातो पे खामोश हो जाती थी और अपने सीने में दुबका लेती जैसे उसके बच्चे को कोई छीन के ले जाने वाला हो . हर मोड़ पे ढाल बन की खड़ी होती थी . मई उन लोगो में से हु जिन्हें घर में भाइयो से ज्यादा तरजीह और प्यार दिया गया ,बेटी होने का मान मिला भयियो पे हुकुम चलने का अधिकार भी ............बचपन की न जाने कितनी कहानिया है किस्से है जिन्हें सोच के आज भी होतो पे मुस्कान तैर जाती है .


आज हम बड़े हो गये है , तो आज माँ की वो छोटी छोटी चिंता , बेवजह ही परेशां होना , मेरे ज़रा सी खरोंच पे माँ का जार जार आंसू बहाना समझ आता है .आज जिस आसमा की नीचे मज़बूत पैरो से खड़े है वो तुमारी बदौलत है जिसका शुक्रिया भी अदा नहीं किया जा सकता . ज्यादा बड़े तोहफे तो तुमे कभी पसंद नहीं आते थे और उन्हें देखने से पहले ही उनकी कीमत सुन के ही कहने लगती की इतने पैसे खर्च करने की क्या ज़रूरत है. महंगे तोहफे भी तुम्हे वो ख़ुशी नहीं देते जो तुम बेटी को ससुराल में खुस देख के महसूस करती हो , बेटे को अपनी बीवी के साथ खुस देख के महसूस करती हो , आज इतने सालो के बाद भी बेटी को बिदा करते तुम्हारी आंखे नम हो जाती . और कोई तोहफा नहीं है इस माँ के लिए बस तुम जैसा बनना है माँ , बस तुम जैसा .

Tuesday, May 3, 2011

kya bura kiya

क्या बुरा किया था जो ये सजा मिली है
जब भी धुंध है रास्ता ..राह टेढ़ी मिली है

छाओं में चाह सुस्ताना जब भी
हर शाख से पत्ती जुदा मिली है


हल किये किस्मत के कितने ही सवाल
हर बार उत्तर की सूचि अलग मिली है


मेहबान है खुदा कुछ ही नसीब्दारो पे
यहाँ तो छोटी सी ख़ुशी भी पीठ किये मिली है


खोलते है सब खिड़कियाँ की कुछ धूप आ सके
पर रौशनी तो अंधेरो को राह देती मिली है


बदल रही है तेरी भी दुनिया शायद
तभी किसी की गलती की सजा किसी मासूम को मिली है


मिटा दो तुम खुद ही हाथो की लकीरें
किस्मत की लकीरे तो चंद हाथो में मिली है

अब नहीं लगता है मन तुझमे
हर राह पे तो तुझसे पहले तेरी झोली खाली मिली है.

Wednesday, March 30, 2011

एक परी कथा ऐसी भी


परी कथाएं हम सबने पढ़ी है , उनकी सबसे खूबसूरत बात ये होती है की वो हमे हकीक़त की दुनिया से दूर ले जा के एक ऐसे स्वपन लोक में पंहुचा देती है जहा हमे थोडा सा सुकून तो मिल जाता है .........कम से काम हमे तो एसा ही लगता है ....कहानी पढने के बाद किताब को सीने पे रख मीठी सी मुस्कान के साथ अपने अलग आसमान में होते है हम

लेकिन हर कहानी का अंत सुखद हो ये जरुरी तो नहीं है न .....यहाँ भी एक राजकुमारी थी ,खुशियों से भरा घर था ..... छोटे छोटे दुःख हवा के परो पे स्वर हो कब चले जाते पता ही नहीं चलता था । दिन महीने साल गुज़रते गये वक़्त बदलता गया , अपने को भुला के जिसने दुसरो को खुशिया दी अज उसको समझने वाला कोई नहीं था ...

जब कभी अपने बारे में सोचा तो दूसरो के बारे में सोचने को कहा गया .....उपर से शांत थी पर अंदर कहीं गहरे एक तूफ़ान जन्म ले रहा था ....जो कभी कभी अकेले में आंसू बन की बह भी जाता था पर दर्द उससे कहीं ज्यादा बढ़ जाता ।

सर्द अलसाई सुबह जब कोहरे से ढंकी होती है तो भी पीले रंग की रौशनी दिख जाती है .......वैसे ही उसे भी दिखी ,

वो दोनों एक दुसरे को धीरे धीरे समझने लगे दोनों के दर्द एक से थे .......बस वो उन्हें शराब के ग्लास में खो देने की सोचता था , पर येही अगर एक रास्ता मुनासिब होता तो सबको अपने गमो से छुटकारा मिल गया होता।


उसने कभी कुछ नहीं छुपाया उससे (मंजरी ) ....और मंजरी के पास तो जैसे कुछ छुपाने को था ही नहीं... विचारो और भावनाओ का सुखद मिलन । इतना सब होते हुए भी एक अंतर था दोनों में , एक पूरी तरह से व्यावहारिक तो दूसरी अपने भावनाओ के साथ जीने वाली । तकरार येही होती थी । वक़्त तो गुज़र ही रहा था .....मौसम बदल रहे थे वसंत के फूलो को अब जेठ की धुप सताने लगी थी कुछ फूल मुरझाने लगे थे .....कभी ठंडी बयार या बिन मौसम बरसात आ जाती तो उनके चेरे खिल जाते थे, पर कब तक ? दूरियों को पाटने वाला पुल अब और ज्यादा चौड़ा होने लगा था , हा दूर जा के नदी संकरी हो जाती थी ........कहानी के इन दो किरदारों को अब वहा दूर तक सफ़र करना है जहा पर जा के हाथो से एक दुसरे को थाम सकेंगे .... और किसी पेड़ के ठंडी छाव में बैठ के तपती धरा को अपने आंसुओ से भिगो सके ।


वक़्त की आगे हारे इन दो किरदारों ...... का क्या होगा ये तो हमे भी नहीं पता .


Tuesday, March 29, 2011

हर शाम सिन्दूरीसी ढल रही है, उन यादो की खुशबू अब तक साँसों में पल रही है , बातें अब भी अक्सर किया करते है तुमसे , अब वो आँखों में नमी सी पल रही है , जाने की लिए आये थे तुम ज़िन्दगी में , एक खवाहिश सीने में आज भी मचल रही है , शाम का सूरज तेरी यादो को महफूज़ रखता है , वो दरिया से आती हवा अब भी चल रही है, उँगलियों का चेहरे पे असर बाकि है , वो शोख ज़ुल्फ़ आज फिर मचल रही है , नीम की छाव में बतियाना देर तक , वो बातें अब भी खामोशियाँ सुन रही है

Monday, February 28, 2011






आजबहुत दिनों की बाद उसकी आँखों में आंसू देखे............आवाज़ में भी वो बात नहीं थी ...............ज़िन्दगी के दुसरे चरण में कदम बढ़ा तो लिए थे लेकिन फिर भी कुछ तो था जो खाए जा रहा था .......एसा लगता था जैसे उसे सब पता है की आने वाले दिनों में क्या होने वाला है .............समझाने की कोई भी कोशिश बेकार ही जाती थी ,नदी के बहाव में उलटे बहते थक सा गया था शायद और अपने अप को नदी की हवाले कर दिया उसने ,जो उसकी फितरत नहीं है बावजूद इसके अगर वो एसा कर रहा है तो कुछ तो है जो उसे समझौता करने को मजबूर कर रहे है ।



ज़िन्दगी को मज़ाक बना की जीने वाले कम होते है ये भी उन्ही में से था । किसी ने कभी उसे जानने या समझने की कोशिश नहीं की उसे उसके हाल पे छोड़ दिया था उसकी फीकी और खोखली हंसी को भी सच्ची हंसी समझने की भूल कर बैठे थे सब । इन्ही सब साजो सामान की साथ वो कब अपनी ज़िन्दगी जीने लगा उस उसे भी नहीं मालूम परबहुत दर्द था सीने में जो कभी कभी सामने आ भी जाता था पर फिर घबरा की वो उसी नकाब को पहन लेता ।



उसने कभी बताया नहीं और न ही हमने पूछा , येही सोच के की वक़्त आने पे खुद बताएगा और उसने कहा भी कई बार की जब वक़्त आयेगा तो वो ज़रूर बताएगा ............



कई बार जब हम रोने की लिए कन्धा ढूंढते है तो वो नहीं मिलता तो दुनिया में अपने वजूद के होने पर भी शक होता है और वक़्त लग जाता है हमे बहार आने में पर उसने तो जैसे तै कर लिया था की किसी की सहारे की ज़रुरत नहीं है पर उसे ज़रुरत थी और आज भी है ।



हर रोज़ एक लड़ाई लड़ता है वो भी हस्ते हसते और हमे भी हँसा ही देता है । पर ये परेशानी तो वो ग्लास के ख़तम होने पर भी कतम नहीं कर पाया ....पिंजरे में पंख मारते कैद से बाहर निकलने को बेचैन था ....पुराने फ़िल्मी गानों में शायद अपनी उलझनों की दवा ढूढ़ रहा था.....पिंजरे से वो बाहर तो निकल गया है थोडा उड़ने की कोशिश भी कर लेगा पर कतरे हुए पंखो ने कब ख़ुशी से उड़ान भरी है शाम होते ही फिर उसी पिंजरे में लौट आयेगा सुबह होने के इंतज़ार में ............

Thursday, January 13, 2011






मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएं

एक तरफ तो वो थी जिसने अपने ही नातियों को जिन्दा नहीं रहने दिया और दूसरा पहलु है की कैम्पस में दुसरे किनारे पे दो और डोगीस ने कुछ पिल्लो को जनम दिया ..................उनमे से एक माँ की पिल्लो को जनम देने की बाद हालत ख़राब होने लगी .........उसने जिन्दा रहने की कोशिश भी की......... जो की दिखती थी ......कई बार घुमने की दौरान उसे उदास पाया ........उसकी आँखों में कुछ था ....शायद वो हमसे किसी मदद की उम्मीद लगाये थी ........
जो हम लोग समझ के नहीं समझ पाए और दस दिनों में वो चल बसी ............

उसकी कहानी यही ख़तम नहीं होती है उसने मरने से पहले अपने माँ होने का फ़र्ज़ भी निभाया .....जिस मदद की उम्मीद उसने हम इंसानों से की थी और हम नाकारा साबित हुए ........उसने अपने बच्चो को पास की दूसरी डौगी को सौप दिए , एक एक बच्चे को अपने मुह में दबा की वो दूसरी डौगी की पास ले के गयी और उसके पास छोड़ दिए ..........शायद ...जरुर कुछ मूक संवाद भी हुआ होगा जो उसने उसके बच्चो को अपना लिया , अपने पांच बच्चो के साथ उसने उस के भी चार बच्चो को पाला ,उतनी ही ममता के साथ जितनी उसने अपने बच्चो को दी होगी ......... आजकल वो नौ तंदुरुस्त बच्चे पूरे कैम्पस में धमाल मचाते है ...और उसी को अपनी माँ मानते है ।

आजकल जानवरों में इंसानियत और इंसानों में जानवर दिखने लगा है।

Saturday, January 1, 2011

ये जीवन है

जीवन हम सब के लिए एक पहेली नहीं बन जाती है ??????????????

कुछ सालो पुरानी बात है एक डौगी ( इसका हिंदी शब्द नै पसंद हमे) ने खुले में दिवाली की दिन कुछ पिल्लो को जनम दिया ......रसोई में कुछ बना रहे थे की बेटी की आवाज़ सुनाई दी जो लगभग चीख रही थी की डौगी की बच्चो को चील ले जा रही है ..........................
मै भी उनके साथ उन मासूम पिल्लो को बचने की लिए दौड़ पड़ी जिंनकी अभी आँख भी नहीं खुली थी ......कई कोशिशो के बाद उन पिल्लो को बचा लिया गया ........उनके लिए आस पास की लोगो ने गरम भोजन भी बनाया और दिया ......और उनका लालन पालन हमारे कैम्पस के बच्चो ने करना शुरू कर दिया .............

स्कूल जाने से पहले और आने की बाद सब एक बार तो मिलने जाते ही थे
ज़िन्दगी चल पड़ी .............एक दिन किसी ने उसमे से एक बच्चे की आगे का पाँव तोड़ दिया ईंट मार के उसे जोड़ने की भी कोशिश की पर सभी पिल्लो को कुछ अजीब लगता होगा तो उस पट्टी को खोल देते
और अंत में वो एक ..........जिम्मी नाम रक्खा था उसका ... एक पाँव से लंगड़ी हो गयी .......धीरे धीरे वो पाँव सड़ने लगा वो रात रात भर दर्द से तड़पती थी और लोग उसकी आवाज़ सुन की उसे मार की भगा देते .........क्यूकी उसका रोना अच्छा नहीं होता है

डॉक्टर हाथ लगाने को तैयार नहीं थे क्युकी वो हमारी पालतू नहीं थी .......
कई बार उसकी पीठ सहला देते थे की शायद ये स्पर्श ही कुछ समय की लिए उसका दर्द कम कर दे ....
ईश्वर को दया आई और जिस घाव से खून रिसता था वो ठीक होने लगा और एकदम ठीक हो भी गया बस पैर बेकार हो गया था ....पर उसके बावजूद वो सबसे तेज भागती थी

वक़्त गुज़रा वो जिम्मी भी माँ बनी उसके पिल्लै उसके साथ रहे कुछ जो लड़के थे वो दुसरे इलाकों में चले गये पर उसकी एक बेटी उसके साथ रही ....(हांलाकि जानवरों में ये रिश्ते मायने नही रक्खते है ) उसकी बेटी का नाम सिप्पी रक्खा गया .......
थोडा वक़्त और गुज़रा और अभी कुछ दिनों पहले उसने चार बच्चो को जनम दिया .......पर उसकी माँ यानि जिम्मी ,उन गुलगुले ताजे मांस के टुकडो को, उसके लिए अपनी भूख मिटने का सबसे आसान जरिया यही था
अपने मुह में दबा के ले गयी और वो सिप्पी अपने बचचो को अपनी माँ से नहीं बचा सकी ............

स्कूल से आने की बाद बचचो ने उन हे खोजने की कोशिश भी की पर वो मिले तब तक मर चुके थे .....
अपने किसी टेस्ट में नंबर कम आने पर शायद इतना नहीं रोये होंगे जितना उसके बच्चो की मरने पे रोये ......जिस जिम्मी को बचाया था हर कदम पर उसका सहारा बने आज वो किसी की दुःख का कारन थी

कुछ दिन निकल जाने के बाद आज सिप्पी भी अपना दुःख शायद भूलने लगीहै और अपनी माँ के बच्चो को देख के शायद अपना दुःख हल्का कर रही है............

इस कहानी का दूसरा पहलू अभी बाकि है ..........................