Saturday, January 1, 2011

ये जीवन है

जीवन हम सब के लिए एक पहेली नहीं बन जाती है ??????????????

कुछ सालो पुरानी बात है एक डौगी ( इसका हिंदी शब्द नै पसंद हमे) ने खुले में दिवाली की दिन कुछ पिल्लो को जनम दिया ......रसोई में कुछ बना रहे थे की बेटी की आवाज़ सुनाई दी जो लगभग चीख रही थी की डौगी की बच्चो को चील ले जा रही है ..........................
मै भी उनके साथ उन मासूम पिल्लो को बचने की लिए दौड़ पड़ी जिंनकी अभी आँख भी नहीं खुली थी ......कई कोशिशो के बाद उन पिल्लो को बचा लिया गया ........उनके लिए आस पास की लोगो ने गरम भोजन भी बनाया और दिया ......और उनका लालन पालन हमारे कैम्पस के बच्चो ने करना शुरू कर दिया .............

स्कूल जाने से पहले और आने की बाद सब एक बार तो मिलने जाते ही थे
ज़िन्दगी चल पड़ी .............एक दिन किसी ने उसमे से एक बच्चे की आगे का पाँव तोड़ दिया ईंट मार के उसे जोड़ने की भी कोशिश की पर सभी पिल्लो को कुछ अजीब लगता होगा तो उस पट्टी को खोल देते
और अंत में वो एक ..........जिम्मी नाम रक्खा था उसका ... एक पाँव से लंगड़ी हो गयी .......धीरे धीरे वो पाँव सड़ने लगा वो रात रात भर दर्द से तड़पती थी और लोग उसकी आवाज़ सुन की उसे मार की भगा देते .........क्यूकी उसका रोना अच्छा नहीं होता है

डॉक्टर हाथ लगाने को तैयार नहीं थे क्युकी वो हमारी पालतू नहीं थी .......
कई बार उसकी पीठ सहला देते थे की शायद ये स्पर्श ही कुछ समय की लिए उसका दर्द कम कर दे ....
ईश्वर को दया आई और जिस घाव से खून रिसता था वो ठीक होने लगा और एकदम ठीक हो भी गया बस पैर बेकार हो गया था ....पर उसके बावजूद वो सबसे तेज भागती थी

वक़्त गुज़रा वो जिम्मी भी माँ बनी उसके पिल्लै उसके साथ रहे कुछ जो लड़के थे वो दुसरे इलाकों में चले गये पर उसकी एक बेटी उसके साथ रही ....(हांलाकि जानवरों में ये रिश्ते मायने नही रक्खते है ) उसकी बेटी का नाम सिप्पी रक्खा गया .......
थोडा वक़्त और गुज़रा और अभी कुछ दिनों पहले उसने चार बच्चो को जनम दिया .......पर उसकी माँ यानि जिम्मी ,उन गुलगुले ताजे मांस के टुकडो को, उसके लिए अपनी भूख मिटने का सबसे आसान जरिया यही था
अपने मुह में दबा के ले गयी और वो सिप्पी अपने बचचो को अपनी माँ से नहीं बचा सकी ............

स्कूल से आने की बाद बचचो ने उन हे खोजने की कोशिश भी की पर वो मिले तब तक मर चुके थे .....
अपने किसी टेस्ट में नंबर कम आने पर शायद इतना नहीं रोये होंगे जितना उसके बच्चो की मरने पे रोये ......जिस जिम्मी को बचाया था हर कदम पर उसका सहारा बने आज वो किसी की दुःख का कारन थी

कुछ दिन निकल जाने के बाद आज सिप्पी भी अपना दुःख शायद भूलने लगीहै और अपनी माँ के बच्चो को देख के शायद अपना दुःख हल्का कर रही है............

इस कहानी का दूसरा पहलू अभी बाकि है ..........................

2 comments:

के सी said...

दूसरे पहलू की प्रतीक्षा है

अभिन्न said...

bahut marmsparshi lekin aaschryajanak ghatna...aapka kathavritant bahut umda aur touchy laga.likhte rahiyega...zindgi ke is pahloo ko koi birla hi apni lekhni de sakta hai so aap ne di hai......dhanyavaad