Tuesday, May 3, 2011

kya bura kiya

क्या बुरा किया था जो ये सजा मिली है
जब भी धुंध है रास्ता ..राह टेढ़ी मिली है

छाओं में चाह सुस्ताना जब भी
हर शाख से पत्ती जुदा मिली है


हल किये किस्मत के कितने ही सवाल
हर बार उत्तर की सूचि अलग मिली है


मेहबान है खुदा कुछ ही नसीब्दारो पे
यहाँ तो छोटी सी ख़ुशी भी पीठ किये मिली है


खोलते है सब खिड़कियाँ की कुछ धूप आ सके
पर रौशनी तो अंधेरो को राह देती मिली है


बदल रही है तेरी भी दुनिया शायद
तभी किसी की गलती की सजा किसी मासूम को मिली है


मिटा दो तुम खुद ही हाथो की लकीरें
किस्मत की लकीरे तो चंद हाथो में मिली है

अब नहीं लगता है मन तुझमे
हर राह पे तो तुझसे पहले तेरी झोली खाली मिली है.

1 comment:

केवल राम said...

हल किये किस्मत के कितने ही सवाल
हर बार उतर की सूची अलग मिली है
यही तो होता है जिन्दगी में ..लेकिन फिर भी जीवन तो चलता रहता है ना ....!