Saturday, September 4, 2010

तुम क्या हो







तुम क्या हो.......
नहीं मालूम...........
शायद एक हवा का झोंका हो ..........
जो आँखे बंद करजाता है ............
पल भर में उन पलकों में.............
रंग नए भर जाता है.............
बाहें खुद ही खुल जाती है..............
जो साँसों में गहरे उतर जाता है................
शायद ................
एक बदल हो जो बरखा की आस..........
दिल में जगा जाता है...........
सोच की ही उस सावन को............
मन हर्षित हो मुस्काता है.................
तपती जलती इस धरा को...............
ठंडी छाव दे जाता है.....................
दो रंगों की इस जीवन में एक
इन्द्रधनुष बन छा जाता है...................
शायद...................
एक चाँद हो.................
जो जीवन को समझाता है..............
घटते बढ़ते दर्द और खुशियों को बतलाता है...........
नित नए खोल में आ के..................
अधरों पे थिरक जाता है...........
पूरा छुप की फिर कल मिलने की..................
एक नयी आशा दे जाता है.........
शायद ............
कोई गीत हो.............
जो मन के तारों में ...............
धुन नयी दे जाता है..........................
भुला जैसे कोई प्रेम याद आ जाता है.......
खुशियों सा आ के मुस्कान सा सज जाता है............
ज़िन्दगी की हर मोड़ पे बहुत अपना सा नज़र आता है.................
























Friday, July 16, 2010

शाम











ढलता हुआ सूरज हमेशा आकर्षित करता है ..............न जाने क्या जुम्बिश है की बस इसके सभी रंगों को आँखों में समेत लेने का मन करता है । कुछ ऐसे ही द्रश्य कुछ दिन पहले देखने को मिले












Sunday, July 11, 2010

जिंदगीनामा

ज़िन्दगी .............ये लफ्ज़ कई दफा हमे बहुत दे जाता ह और बाज़ दफा कुछ चीज़े छीन भी लेता है ।
जब तक हम किसी बदलाव को समझ पाते है उसकी खूबसूरती ख़त्म हो चुकी होती है
.....ज़िन्दगी जीने के हर किसी का अपना नजरिया होता है ............ये नजरिया बदलता भी है ..........वक़्त की साथ

इस सफ़र में हम कितना कुछ चाहते है ................मिलता भी बहुत कुछ है .........पर अपने तरीके से और अपने हिसाब से

जिसने इस का लुत्फ़ उठाना शीख लिया सही माएनो में तो ज़िन्दगी उसी ने जी है

Sunday, May 16, 2010

महकता मोगरा

सिरहाने सजे मोगरे की गजरे से तुम..........

बिखरे गेसुओ से हर पल उलझते तुम ........



रत भर रहा महकता पोर पोर ........

और उस गजरे की महक में बहकते तुम......



रत भर चन्द्रमा करता रहा आंख मिचौली ........

उसकी इस शरारत को कनखियों से धमकते तुम........



अब तो चन्द्रमा भी पड़ने फीका .........

और उसकी मध्यम रोशिनी में हमे तकते तुम....

Thursday, February 25, 2010

देख लेने देना


जब चाहे तुम्हे देखना , तुम देख लेने देना
हमारी इन सूनी आँखों को अब बह लेने देना

तुझे छु की आती हवाओ कों हमारे तक आ जाने देना
तू न सही तेरे होने का एहसास हो लेने देना

पा न सके तुम्हे तो क्या ख्वाबो में रहगुज़र करने देना
निशान जहाँ पड़े तेरे कदमो की हमे पनाह कर लेने देना

ख्वाहिश थी तेरे आगोश में आने की , हसरत पूरी कर लेने देना
इस फ़ना होते शरीर को नहीं रूहों को मिल लेने देना

नहीं होता यकीन इस दुनिया की हकीकतो पे
झूठ पे यकीन हो लेने देना
ज़मीन पे न मिल सके तो क्या , वहा जन्नतों में मिल लेने देना............