Thursday, January 13, 2011


एक तरफ तो वो थी जिसने अपने ही नातियों को जिन्दा नहीं रहने दिया और दूसरा पहलु है की कैम्पस में दुसरे किनारे पे दो और डोगीस ने कुछ पिल्लो को जनम दिया ..................उनमे से एक माँ की पिल्लो को जनम देने की बाद हालत ख़राब होने लगी .........उसने जिन्दा रहने की कोशिश भी की......... जो की दिखती थी ......कई बार घुमने की दौरान उसे उदास पाया ........उसकी आँखों में कुछ था ....शायद वो हमसे किसी मदद की उम्मीद लगाये थी ........
जो हम लोग समझ के नहीं समझ पाए और दस दिनों में वो चल बसी ............

उसकी कहानी यही ख़तम नहीं होती है उसने मरने से पहले अपने माँ होने का फ़र्ज़ भी निभाया .....जिस मदद की उम्मीद उसने हम इंसानों से की थी और हम नाकारा साबित हुए ........उसने अपने बच्चो को पास की दूसरी डौगी को सौप दिए , एक एक बच्चे को अपने मुह में दबा की वो दूसरी डौगी की पास ले के गयी और उसके पास छोड़ दिए ..........शायद ...जरुर कुछ मूक संवाद भी हुआ होगा जो उसने उसके बच्चो को अपना लिया , अपने पांच बच्चो के साथ उसने उस के भी चार बच्चो को पाला ,उतनी ही ममता के साथ जितनी उसने अपने बच्चो को दी होगी ......... आजकल वो नौ तंदुरुस्त बच्चे पूरे कैम्पस में धमाल मचाते है ...और उसी को अपनी माँ मानते है ।

आजकल जानवरों में इंसानियत और इंसानों में जानवर दिखने लगा है।

2 comments:

के सी said...

ये अद्भुत है !

अभिन्न said...

..........शायद ...जरुर कुछ मूक संवाद भी हुआ होगा जो उसने उसके बच्चो को अपना लिया , aapke lekhan ki ek khas baat...shbdon ke maadhyam se jo kathanak aapne prastut kiya vo bhi bejubaan jaanvaron ka bahut sajeev aur utkrisht laga
अपने पांच बच्चो के साथ उसने उस के भी चार बच्चो को पाला ,उतनी ही ममता के साथ जितनी उसने अपने बच्चो को दी होगी ....
bilkul yahi hua hoga.....aaj kal hi kyun aadmi aur jaanvar by nature aise hi hote hai... mamta aur swarth har insaan me hota hai.....bas use balance kar ke rakhne ki aavshyakta hai propkar ki bhavna sarvsreshth hoti hai.
aap ko anekon badhaiyaan aap chhupe rustam nikle.