आपकी चाहत आपको न मिले उसका भी दर्द होता है और वक़्त उसे भर भी देता है .....नए रास्ते भी मिल जाते है फिर अचानक एक पगडण्डी आपको वाही वापिस ले अति है जहा आप पहले कभी थे ,चमक आँखों में आ जाती है लेकिन पगडण्डी इ तो है और वो किसी दुसरे रस्ते में मिल की खो जाती है जहा आप चाह कर भी नहीं जा सकते . कुछ छोटी खुशियों को समेत के अपने रस्ते में आप फिर चलने लगते है पर कुछ देर मिली छाव , एक मजबूत दरख़्त पे टिकना याद रहता है .
जब हमें किसी की सबसे ज्यादा जरुरत होती है वो तभी साथ छोड़ देता है फिर उसका साथ हमे मिलता ही क्यों है ...शायद कुछ और दर्द देने के लिए .
कहते है की आगे छलांग लगाने के लिए पीछे हटना पड़ता है , पर पीछे जाने पे अगर पैरों में जंजीर बंद दी जाये तो कोई कैसे कूद सकता है ?
अँधेरा घना हो जाये तो समझो सवेरा होने को है .......पर ये अँधेरा कुछ ज्यादा दिनों तक रह जाये तो सवेरे की गुंजाईश कम होने लगती है ......कुछ नहीं रुकेगा कोई ए कोई जाये ....दुःख आते है और चले जाते है और अगर टिक भी गये तो हम उन्ही के साथ जीना सीख जाते है . जीना भी बेवजह सा ही तो लगने लगता है न कभी न कोई मकसद न कोई उत्साह ....फिर अचानक ये सर झटक के उठ जाते है और सोचते है जो सो हो गया अब आगे की सोचो .......जो पास है उसे खूबसूरत बनाओ
वक़्त आज साथ नहीं है तो क्या , हमेशा तो एसा नहीं होगा न