फिर शाम के रंग बिखरने लगे है
इन आँखों में सपने सजने लगे है
हर शाम के रंगों में कुछ ऐसा नूर है
की महसूस सब पास होता है जो कुछ भी दूर है
हर शाम यादों का खजाना सा लगता है
इसमे दीखता हर साया कुछ पहचाना सा लगता है
सिन्दूरी छठा जब बिखर जाती है
यादों की दुनिया में हलचल सी मच जाती है
उन यादों की उठा पटक कुछ यूँ कर जाती है
की धीमे धीमे से मेरी दुनिया फिर रोशन कर जाती है
.......................................................शायद
इसीलिए हर शाम मुझे सुहाती है ,
जाते जाते भी मेरे दिल में शमा जला जाती है ।
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