.............छुट्टियाँ !!!!!!!!!हमेशा बेसब्री से इंतज़ार रहता है । दो दिन के बाद ही लगने लगता है की क्यों हुई ये छुट्टियाँ .......कुछ काम न होने की परेशानी , या अपने दिल में जो परेशानी छुपी हुई थी उसके उभर आने की दिक्कत ............ ये खाली वक्त बहुत कुछ सोचने का वक्त देता है और कई बार आँखों में नमी भी दे जाता है ....... न मालूम कहाँ कहाँ की सैर कर आता है और एक नए खालीपन का एहसास ले आता है ........
कई बार सोचते है की काश ये दिमाग एक स्लेट की तरह होता जो कुछ भी लिखने के बाद अस्सानी से मिटाया जा सकता लेकिन यहाँ कुछ नही मिट पाता हाँ धुंधला ज़रूर हो जाता है
सब कुछ पता है , सब मालूम है पर दिल नही मानता हर बार येही सवाल ......... मेरे साथ ही एसा क्यों ?
मन में आता है की सब कुछ छोड़ के कही दूर निकल जाए जहाँ कोई परेशानी न छु पाए ......... कोई जवाब देने को न हो ...... कोई समझाने वाला न हो
" दौड़ जाऊँ उन वीरानो में जहाँ मेरा साया भी न हो
कहाँ से लाऊं वो दामन जो जिसमे खुशियों का पैमाना न हो "
2 comments:
इतना सन्नाटा क्यों है यहाँ पर ,लेख पढ़ कर आपकी लेखन प्रतिभा का तो पता चलता ही है साथ ही साथ एक उदासी भरा वातावरण भी देखने को मिला "मेरे साथ ही ऐसा क्यों .........." ये सवाल बहुत उचाट सा कर रहा है .
" दौड़ जाऊँ उन वीरानो में जहाँ मेरा साया भी न हो
कहाँ से लाऊं वो दामन जो जिसमे खुशियों का पैमाना न हो "
बहुत अच्छा लिखा है परन्तु पता नहीं क्यूँ एक उदासी भरी अमिट छाप भी छोड़ गया है
वाह वाह क्या बात है! बहुत ही उन्दा लिखा है आपने !
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