छातों से रिश्ते
गर्मियों की दस्तक ने इतने दिनों से भूले छातों की याद फिर दिला दी . पुराने कुछ ख़राब से हो गये थे सो बाज़ार से नए लाये गये , जब उन छातों ने गृहप्रवेश किया तो लगा एक नए दोस्त का आगमन हुआ है . दिखने में सुन्दर ,सौम्य था पर फिर कुछ देर उसे निहारने की बाद हमे अपने पुराने कहते की याद आई और जब मुड़ के देखा वो एक अँधेरे कोने में अपने घुटनों के बीच अपना सिर छुपाये उदास बैठा था . वो घर में आये उन नए छातों को ऐसे देख रहा था जैसे वो उसे बेघर कर देंगे . उसका यूँ उदास होना हमसे देखा नहीं गया और हम नए छातों को छोड़ के अपने पुराने छाते के पास गये और उसे तस्सली दी की वो कहीं नहीं जाने वाला चाहे कितने ही नए छाते क्यों न आ जाये , अब उसके चेहरे पे थोड़ी सी मुस्कान आई और हमारे दिल को राहत .
धूप में हमारा पुराना छाता अब भी गर्मी का एहसास नहीं होने देता और नीम सी ठंडक में समेटे रहता है लेकिन आजकल के नए लुभावने अलग अलग रंगों और पैटर्न वाले छातों में वो बात नहीं है . वो सिर्फ बाहर से खूबसूरत है , ठंडक और छायां उसमे नहीं मिलती .
आजकल रिश्ते भी कहीं इन नए छातों जैसे नहीं हो गये है ?