Wednesday, March 30, 2011

एक परी कथा ऐसी भी


परी कथाएं हम सबने पढ़ी है , उनकी सबसे खूबसूरत बात ये होती है की वो हमे हकीक़त की दुनिया से दूर ले जा के एक ऐसे स्वपन लोक में पंहुचा देती है जहा हमे थोडा सा सुकून तो मिल जाता है .........कम से काम हमे तो एसा ही लगता है ....कहानी पढने के बाद किताब को सीने पे रख मीठी सी मुस्कान के साथ अपने अलग आसमान में होते है हम

लेकिन हर कहानी का अंत सुखद हो ये जरुरी तो नहीं है न .....यहाँ भी एक राजकुमारी थी ,खुशियों से भरा घर था ..... छोटे छोटे दुःख हवा के परो पे स्वर हो कब चले जाते पता ही नहीं चलता था । दिन महीने साल गुज़रते गये वक़्त बदलता गया , अपने को भुला के जिसने दुसरो को खुशिया दी अज उसको समझने वाला कोई नहीं था ...

जब कभी अपने बारे में सोचा तो दूसरो के बारे में सोचने को कहा गया .....उपर से शांत थी पर अंदर कहीं गहरे एक तूफ़ान जन्म ले रहा था ....जो कभी कभी अकेले में आंसू बन की बह भी जाता था पर दर्द उससे कहीं ज्यादा बढ़ जाता ।

सर्द अलसाई सुबह जब कोहरे से ढंकी होती है तो भी पीले रंग की रौशनी दिख जाती है .......वैसे ही उसे भी दिखी ,

वो दोनों एक दुसरे को धीरे धीरे समझने लगे दोनों के दर्द एक से थे .......बस वो उन्हें शराब के ग्लास में खो देने की सोचता था , पर येही अगर एक रास्ता मुनासिब होता तो सबको अपने गमो से छुटकारा मिल गया होता।


उसने कभी कुछ नहीं छुपाया उससे (मंजरी ) ....और मंजरी के पास तो जैसे कुछ छुपाने को था ही नहीं... विचारो और भावनाओ का सुखद मिलन । इतना सब होते हुए भी एक अंतर था दोनों में , एक पूरी तरह से व्यावहारिक तो दूसरी अपने भावनाओ के साथ जीने वाली । तकरार येही होती थी । वक़्त तो गुज़र ही रहा था .....मौसम बदल रहे थे वसंत के फूलो को अब जेठ की धुप सताने लगी थी कुछ फूल मुरझाने लगे थे .....कभी ठंडी बयार या बिन मौसम बरसात आ जाती तो उनके चेरे खिल जाते थे, पर कब तक ? दूरियों को पाटने वाला पुल अब और ज्यादा चौड़ा होने लगा था , हा दूर जा के नदी संकरी हो जाती थी ........कहानी के इन दो किरदारों को अब वहा दूर तक सफ़र करना है जहा पर जा के हाथो से एक दुसरे को थाम सकेंगे .... और किसी पेड़ के ठंडी छाव में बैठ के तपती धरा को अपने आंसुओ से भिगो सके ।


वक़्त की आगे हारे इन दो किरदारों ...... का क्या होगा ये तो हमे भी नहीं पता .


2 comments:

अभिन्न said...

bahut sundar shabd-chitr,ek dum sahityik darze ka...ye manjri kaun hai...aur vo kaun hai......jo bhi ho dono me bada..अंतर था दोनों में , एक पूरी तरह से व्यावहारिक तो दूसरी अपने भावनाओ के साथ जीने वाली । तकरार येही होती थी. congatulations for such a marvls writing....be frequent in writing u r a gud writer with poetic heart

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर कहानी|
नवसंवत्सर २०६८ की हार्दिक शुभकामनाएँ|