Tuesday, March 29, 2011

हर शाम सिन्दूरीसी ढल रही है, उन यादो की खुशबू अब तक साँसों में पल रही है , बातें अब भी अक्सर किया करते है तुमसे , अब वो आँखों में नमी सी पल रही है , जाने की लिए आये थे तुम ज़िन्दगी में , एक खवाहिश सीने में आज भी मचल रही है , शाम का सूरज तेरी यादो को महफूज़ रखता है , वो दरिया से आती हवा अब भी चल रही है, उँगलियों का चेहरे पे असर बाकि है , वो शोख ज़ुल्फ़ आज फिर मचल रही है , नीम की छाव में बतियाना देर तक , वो बातें अब भी खामोशियाँ सुन रही है

1 comment:

Dr (Miss) Sharad Singh said...

हर शाम सिन्दूरीसी ढल रही है, उन यादो की खुशबू अब तक साँसों में पल रही है , बातें अब भी अक्सर किया करते है तुमसे , अब वो आँखों में नमी सी पल रही है .....


बहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी
खूबसूरत रचना के लिए
आपको हार्दिक बधाई।