Friday, March 23, 2012




छातों से रिश्ते






गर्मियों की दस्तक ने इतने दिनों से भूले छातों की याद फिर दिला दी . पुराने कुछ ख़राब से हो गये थे सो बाज़ार से नए लाये गये , जब उन छातों ने गृहप्रवेश किया तो लगा एक नए दोस्त का आगमन हुआ है . दिखने में सुन्दर ,सौम्य था पर फिर कुछ देर उसे निहारने की बाद हमे अपने पुराने कहते की याद आई और जब मुड़ के देखा वो एक अँधेरे कोने में अपने घुटनों के बीच अपना सिर छुपाये उदास बैठा था . वो घर में आये उन नए छातों को ऐसे देख रहा था जैसे वो उसे बेघर कर देंगे . उसका यूँ उदास होना हमसे देखा नहीं गया और हम नए छातों को छोड़ के अपने पुराने छाते के पास गये और उसे तस्सली दी की वो कहीं नहीं जाने वाला चाहे कितने ही नए छाते क्यों न आ जाये , अब उसके चेहरे पे थोड़ी सी मुस्कान आई और हमारे दिल को राहत .

धूप में हमारा पुराना छाता अब भी गर्मी का एहसास नहीं होने देता और नीम सी ठंडक में समेटे रहता है लेकिन आजकल के नए लुभावने अलग अलग रंगों और पैटर्न वाले छातों में वो बात नहीं है . वो सिर्फ बाहर से खूबसूरत है , ठंडक और छायां उसमे नहीं मिलती .



आजकल रिश्ते भी कहीं इन नए छातों जैसे नहीं हो गये है ?

Saturday, June 25, 2011

बेवजह ही सही

बेवजह बाते ..........बाते ही नहीं जीवन में भी कई किस्से शायद बेवजह ही होते है , या शायद हमे उसके होने की कोई वजह समझ नहीं आती . जब तक सब अच्छा होता है तब तक हम खुश होते है और बुरा होते ही सोचते है की ये क्यों हुआ . ये ज़िन्दगी भी तो कई कई रास्तो से होकर जाती है कुछ रास्ते आप चुनते है कुछ आपको थमा दिए जाते है ,और उन रास्तो पे थोडा सा आगे आने पर पीछे जाने की रस्ते बंद हो जाते है और फिर हमे उन्ही रास्तो पे अपनी खुशिया ढूंढनी पड़ती है . दिल कितना भी रोये चेहरे पे ख़ुशी लानी पड़ती है ,प्यार जितनी ख़ुशी देता है उससे कही ज्यादा गम दे जाता है . वक़्त हमे बहुत कुछ सिखा देता है शायद हर तरीके से जीना सिखाता है पर हम सीखना नै चाहते .....या उस हकीक़त को क़ुबूल नहीं कर पाते .तब वो दिल में दर्द बन की बैठ जाता है.



आपकी चाहत आपको न मिले उसका भी दर्द होता है और वक़्त उसे भर भी देता है .....नए रास्ते भी मिल जाते है फिर अचानक एक पगडण्डी आपको वाही वापिस ले अति है जहा आप पहले कभी थे ,चमक आँखों में आ जाती है लेकिन पगडण्डी इ तो है और वो किसी दुसरे रस्ते में मिल की खो जाती है जहा आप चाह कर भी नहीं जा सकते . कुछ छोटी खुशियों को समेत के अपने रस्ते में आप फिर चलने लगते है पर कुछ देर मिली छाव , एक मजबूत दरख़्त पे टिकना याद रहता है .

जब हमें किसी की सबसे ज्यादा जरुरत होती है वो तभी साथ छोड़ देता है फिर उसका साथ हमे मिलता ही क्यों है ...शायद कुछ और दर्द देने के लिए .

कहते है की आगे छलांग लगाने के लिए पीछे हटना पड़ता है , पर पीछे जाने पे अगर पैरों में जंजीर बंद दी जाये तो कोई कैसे कूद सकता है ?

अँधेरा घना हो जाये तो समझो सवेरा होने को है .......पर ये अँधेरा कुछ ज्यादा दिनों तक रह जाये तो सवेरे की गुंजाईश कम होने लगती है ......कुछ नहीं रुकेगा कोई ए कोई जाये ....दुःख आते है और चले जाते है और अगर टिक भी गये तो हम उन्ही के साथ जीना सीख जाते है . जीना भी बेवजह सा ही तो लगने लगता है न कभी न कोई मकसद न कोई उत्साह ....फिर अचानक ये सर झटक के उठ जाते है और सोचते है जो सो हो गया अब आगे की सोचो .......जो पास है उसे खूबसूरत बनाओ

वक़्त आज साथ नहीं है तो क्या , हमेशा तो एसा नहीं होगा न

Sunday, May 8, 2011

माँ

         



कल मातृत्व दिवस है, और इस वक़्त रात का एक बज रहा है ...इस हिसाब से तो ८ मई हो गयी . अपनी माँ को याद करने का एक दिन , एक ख़ास दिन . आज हम खुद दो बच्चो की माँ है पर आज भी जब कोई समस्या अति है या दिल भरी होता है तो माँ की अलावा और कोई नहीं याद आता. बचपन से लेकर बड़े होने तक हर सपना माँ से बताया , हर सपने पे वो मुस्कुरा देती थी जैसे उसे उन सपनो के पुरे होने का आभास था पर कुछ बातो पे खामोश हो जाती थी और अपने सीने में दुबका लेती जैसे उसके बच्चे को कोई छीन के ले जाने वाला हो . हर मोड़ पे ढाल बन की खड़ी होती थी . मई उन लोगो में से हु जिन्हें घर में भाइयो से ज्यादा तरजीह और प्यार दिया गया ,बेटी होने का मान मिला भयियो पे हुकुम चलने का अधिकार भी ............बचपन की न जाने कितनी कहानिया है किस्से है जिन्हें सोच के आज भी होतो पे मुस्कान तैर जाती है .


आज हम बड़े हो गये है , तो आज माँ की वो छोटी छोटी चिंता , बेवजह ही परेशां होना , मेरे ज़रा सी खरोंच पे माँ का जार जार आंसू बहाना समझ आता है .आज जिस आसमा की नीचे मज़बूत पैरो से खड़े है वो तुमारी बदौलत है जिसका शुक्रिया भी अदा नहीं किया जा सकता . ज्यादा बड़े तोहफे तो तुमे कभी पसंद नहीं आते थे और उन्हें देखने से पहले ही उनकी कीमत सुन के ही कहने लगती की इतने पैसे खर्च करने की क्या ज़रूरत है. महंगे तोहफे भी तुम्हे वो ख़ुशी नहीं देते जो तुम बेटी को ससुराल में खुस देख के महसूस करती हो , बेटे को अपनी बीवी के साथ खुस देख के महसूस करती हो , आज इतने सालो के बाद भी बेटी को बिदा करते तुम्हारी आंखे नम हो जाती . और कोई तोहफा नहीं है इस माँ के लिए बस तुम जैसा बनना है माँ , बस तुम जैसा .

Tuesday, May 3, 2011

kya bura kiya

क्या बुरा किया था जो ये सजा मिली है
जब भी धुंध है रास्ता ..राह टेढ़ी मिली है

छाओं में चाह सुस्ताना जब भी
हर शाख से पत्ती जुदा मिली है


हल किये किस्मत के कितने ही सवाल
हर बार उत्तर की सूचि अलग मिली है


मेहबान है खुदा कुछ ही नसीब्दारो पे
यहाँ तो छोटी सी ख़ुशी भी पीठ किये मिली है


खोलते है सब खिड़कियाँ की कुछ धूप आ सके
पर रौशनी तो अंधेरो को राह देती मिली है


बदल रही है तेरी भी दुनिया शायद
तभी किसी की गलती की सजा किसी मासूम को मिली है


मिटा दो तुम खुद ही हाथो की लकीरें
किस्मत की लकीरे तो चंद हाथो में मिली है

अब नहीं लगता है मन तुझमे
हर राह पे तो तुझसे पहले तेरी झोली खाली मिली है.

Wednesday, March 30, 2011

एक परी कथा ऐसी भी


परी कथाएं हम सबने पढ़ी है , उनकी सबसे खूबसूरत बात ये होती है की वो हमे हकीक़त की दुनिया से दूर ले जा के एक ऐसे स्वपन लोक में पंहुचा देती है जहा हमे थोडा सा सुकून तो मिल जाता है .........कम से काम हमे तो एसा ही लगता है ....कहानी पढने के बाद किताब को सीने पे रख मीठी सी मुस्कान के साथ अपने अलग आसमान में होते है हम

लेकिन हर कहानी का अंत सुखद हो ये जरुरी तो नहीं है न .....यहाँ भी एक राजकुमारी थी ,खुशियों से भरा घर था ..... छोटे छोटे दुःख हवा के परो पे स्वर हो कब चले जाते पता ही नहीं चलता था । दिन महीने साल गुज़रते गये वक़्त बदलता गया , अपने को भुला के जिसने दुसरो को खुशिया दी अज उसको समझने वाला कोई नहीं था ...

जब कभी अपने बारे में सोचा तो दूसरो के बारे में सोचने को कहा गया .....उपर से शांत थी पर अंदर कहीं गहरे एक तूफ़ान जन्म ले रहा था ....जो कभी कभी अकेले में आंसू बन की बह भी जाता था पर दर्द उससे कहीं ज्यादा बढ़ जाता ।

सर्द अलसाई सुबह जब कोहरे से ढंकी होती है तो भी पीले रंग की रौशनी दिख जाती है .......वैसे ही उसे भी दिखी ,

वो दोनों एक दुसरे को धीरे धीरे समझने लगे दोनों के दर्द एक से थे .......बस वो उन्हें शराब के ग्लास में खो देने की सोचता था , पर येही अगर एक रास्ता मुनासिब होता तो सबको अपने गमो से छुटकारा मिल गया होता।


उसने कभी कुछ नहीं छुपाया उससे (मंजरी ) ....और मंजरी के पास तो जैसे कुछ छुपाने को था ही नहीं... विचारो और भावनाओ का सुखद मिलन । इतना सब होते हुए भी एक अंतर था दोनों में , एक पूरी तरह से व्यावहारिक तो दूसरी अपने भावनाओ के साथ जीने वाली । तकरार येही होती थी । वक़्त तो गुज़र ही रहा था .....मौसम बदल रहे थे वसंत के फूलो को अब जेठ की धुप सताने लगी थी कुछ फूल मुरझाने लगे थे .....कभी ठंडी बयार या बिन मौसम बरसात आ जाती तो उनके चेरे खिल जाते थे, पर कब तक ? दूरियों को पाटने वाला पुल अब और ज्यादा चौड़ा होने लगा था , हा दूर जा के नदी संकरी हो जाती थी ........कहानी के इन दो किरदारों को अब वहा दूर तक सफ़र करना है जहा पर जा के हाथो से एक दुसरे को थाम सकेंगे .... और किसी पेड़ के ठंडी छाव में बैठ के तपती धरा को अपने आंसुओ से भिगो सके ।


वक़्त की आगे हारे इन दो किरदारों ...... का क्या होगा ये तो हमे भी नहीं पता .