Thursday, February 25, 2010

देख लेने देना


जब चाहे तुम्हे देखना , तुम देख लेने देना
हमारी इन सूनी आँखों को अब बह लेने देना

तुझे छु की आती हवाओ कों हमारे तक आ जाने देना
तू न सही तेरे होने का एहसास हो लेने देना

पा न सके तुम्हे तो क्या ख्वाबो में रहगुज़र करने देना
निशान जहाँ पड़े तेरे कदमो की हमे पनाह कर लेने देना

ख्वाहिश थी तेरे आगोश में आने की , हसरत पूरी कर लेने देना
इस फ़ना होते शरीर को नहीं रूहों को मिल लेने देना

नहीं होता यकीन इस दुनिया की हकीकतो पे
झूठ पे यकीन हो लेने देना
ज़मीन पे न मिल सके तो क्या , वहा जन्नतों में मिल लेने देना............

3 comments:

के सी said...

पहली पंक्ति में जादुई सम्मोहन है. इसे पढ़ते ही रुक जाता हूँ कि किस खूबसूरती से आपने एक पूरे भाव को सजीव कर दिया है. क्यों ऐसा होता है कि एक वाक्य को सुनने के बाद उसके आगे कई ग्रंथ फीके लगने लगते हैं.

अभिन्न said...

तुझे छु की आती हवाओ कों हमारे तक आ जाने देना
तू न सही तेरे होने का एहसास हो लेने देना
................
इस फ़ना होते शरीर को नहीं रूहों को मिल लेने देना

...............
ज़मीन पे न मिल सके तो क्या , वहा जन्नतों में मिल लेने देना............
kya dil se likhi panktiyan hai, vah ji vah.aaj arse baad prem ka yah roop padhne ko mila.kishore ji ne sahi hi kaha hai ki jadui sammohan hai.ek baat avshy kahunga bahut chhupe rustam ho aap itna achchha likhte ho, phir likhne me kanjoosi kyon.
shubhkamnon sahit dhanyavaad

Unknown said...

ज़मीन पे न मिल सके तो क्या , वहा जन्नतों में मिल लेने देना....
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति.

विकास पाण्डेय
www.विचारो का दर्पण.blogspot.com