सिरहाने सजे मोगरे की गजरे से तुम..........
बिखरे गेसुओ से हर पल उलझते तुम ........
रत भर रहा महकता पोर पोर ........
और उस गजरे की महक में बहकते तुम......
रत भर चन्द्रमा करता रहा आंख मिचौली ........
उसकी इस शरारत को कनखियों से धमकते तुम........
अब तो चन्द्रमा भी पड़ने फीका .........
और उसकी मध्यम रोशिनी में हमे तकते तुम....
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