टेढ़े मेढ़े रास्तो पे चल रही थी ज़िन्दगी ...............
रास्ता भी अपना था राहगीर भी ...
फिर भी न जाने क्यों बिखर रही थी ज़िन्दगी ???????????
सोच के जब कदम बढाया हमने
हर उस पल न जाने क्यों हमे छल रही थी ज़िन्दगी .................
आह भी न निकल सकी ...
क्यों इतनी तंग थी ये ज़िन्दगी ?????????
चाहतो के मौसम की राह हम तकते रहे
साजिशे हमारे लिए बुन रही थी ज़िन्दगी............
वक़्त की ताकत को पहचानते है
फिर भी हमसे अजनबी थी ज़िन्दगी...........
आरजू बस तुमे देख लेने की है
खाक न हो जाये हम ........येदेख लेना ज़िन्दगी .......................
3 comments:
आह भी न निकल सकी ...
क्यों इतनी तंग थी ये ज़िन्दगी ?????????
Bahut khoob!
कसमकश कैसी ????? बहुत मनभावन रचना लगी,आप बहुत अच्छा लिखते है फिर इतने दिनों बाद क्यूँ लिखते हो कृपया लिखते रहा कीजिये
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चाहतो के मौसम की राह हम तकते रहे
साजिशे हमारे लिए बुन रही थी ज़िन्दगी.....
सुन्दर रचना. पोस्ट डालने में इतना लम्बा अन्तराल क्यों?
गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें
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