क्या होता जो मुझसे न कहता ,
इतने बरसों बाद मुझे याद न करता ,
कई मौसम आके चले गए ,
फिर से वही मौसम दस्तक न देता ,
कह गया वो जो कहना था उसे ,
अज भी न देखा जो सैलाब था उमड़ता ,
खिचे चले गये जज़्बात किसी ज्वार की तरह ,
शायद आज भी वो हमें काबिल नही समझता ,
खता क्या थी आज भी नहीं मालुम ,
बस आजकल वो कोई रिश्ता नहीं रखता,
अब नहीं रही उससे कोई शिकायत ,
रिश्ता ना सही पर बात तो करता,
2 comments:
sach hai bilkul mere liye...
bahut acha lika hai aapne....
अब नहीं रही उससे कोई शिकायत ,
रिश्ता ना सही पर बात तो करता,
बहुत ही बेहतरीन लिखा है आपने,बहुत अच्छा लगा लिखते रहिएगा
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