Saturday, August 15, 2009

क्यों आज सब शांत था




क्यों आज सब कुछ बहुत शांत था
पिघलता हुआ आसमान था
हवा का भी मंद बहाव था
क्यों आज सब कुछ ...........

शायद आसमान उदास था ...
पाके कुछ खोने का अहसास था
बना के चेहरे रंग बिखेर दिए
रंगों का फीकापन आज कुछ ख़ास था
क्यों आज सब कुछ .......

शायद हवा ने छेडा उदासी भरा राग था
ले चली थी संग जिसे वो बिना सुर का साज़ था
भूल गई थी पहनना पैजेब आज
विरह का गीत उसके आस पास था
क्यों आज सब कुछ.........

शायद रात की खामोशी में कुछ होने को था
चाँद भी आज बादलों की ओ़त में था
पत्तों ने शाख से , चांदनी ने चाँद से पूछा अपना रिश्ता
आसमान अब जी भर के रोने को था
क्यों आज सब कुछ बहुत शांत था ?????

3 comments:

kumar said...

aapke es new addition pe kuch yun arz hai


yeh aarzoo thi ke aisa bhi kuch hua hota,
meri kami ne khabhi unhain bhi rula diyah ota,
hum laut aate unke pass,
unhone apne labon se mera naam to liya hota

ilesh said...

bahut khubsurat ehsas...nice to read...regards

अभिन्न said...

.पत्तों ने शाख से
चांदनी ने चाँद से पूछा अपना रिश्ता
.....
क्यों आज सब कुछ बहुत शांत था ?????
very touching questions...
some relations are very meaningful yet unnamed,they are so close to heart,that we cant efford their separation,at the same time we r so helpless we cant even preserve them with liberty this is life this is world this is true this is real poetry,real ehsaas,
भूल गई थी पहनना पैजेब आज
विरह का गीत उसके आस पास था
very touchy lines