शाम ढलते ही फ्हिर सब शांत हो गया ,
न निकले कोई दिन ये ख्याल सा हो गया ,
शब्द न निकले लबों से तुमाहरे पर,
आंखों का अपनापन भी न जाने कहाँ खो गया ,
ढूँढा बहुत अपने अंदर , हर तरफ़
पर न जाने वो भरोसा कहाँ खो गया ,
इंकार भी तो नै किया तूमने
बस इकरार बदहवास हो गया,
पता नही क्या रिश्ता था ,
न मालूम कहाँ क्या खो गया ,
जब कभी आएगी याद और आंख भर जायेगी,
हम समझ लेंगे की ज़िन्दगी को हमने भी थोड़ा बहुत जी लिया .
3 comments:
गुल हो मगर न खार हो ऐसा नही होता
दुनिया मे सिर्फ़ प्यार हो ऐसा नही होता
इस जिंदगी में गम की अहमियत भी कम नहीं
हरदम गुले-गुलजार हो ऐसा नहीं होता
नाकामियां इन्सान को दिखाती है नई राह
लेकिन हमेंशा हार हो ऐसा नहीं होता
बेशक हमारे पास जमानें का हुनर है
हर कोई तलबगार हो ऐसा नहीं होता
कुछ लोग हैं जो दर्द छुपातें है दिलों में
सबको गमों से प्यार हो ऐसा नहीं होता
मिल जाये अगर एक भी इन्सान बहुत है
सारा जहां यार हो ऐसा नहीं होता
बस सिरफिरे ही जान लुटाते है वतन पर
हर शखस जाँनिसार हो ऐसा नहीं होता
हिम्मत है अगर नन्हे परिंदे के जिगर में
फिर आसमां पार न हो ऍसा नहीं होता
बहुत ही सुन्दर ओर भावपूर्ण रचना लिखी गई है ,
एक एक शेर सँभालने लायक ....
पता नहीं क्या रिश्ता था???
इस रिश्ते का कोई नाम नहीं हो सकता बहुत दर्द ओर बहुत प्यार होता है इसमें
निम्न पंक्तिया बहुत ही अच्छी लगी
बधाई इतना बेहतरीन लेखन के लिए
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शब्द न निकले लबों से तुमाहरे पर,
आंखों का अपनापन भी न जाने कहाँ खो गया ,
......................
इंकार भी तो नै किया तूमने
बस इकरार बदहवास हो गया,
.................
पता नही क्या रिश्ता था ,
न मालूम कहाँ क्या खो गया ,
............................
kisi ko pass aane main waqt lagta hai,
kisi ko apna banane main waqt lagta hai,
jab maangi khuda se aapki dosti,
to khuda bhi bola,,
sabra rakh anmol cheez pane main waqt lagta hai
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