हर साँस के साथ एक आहट होती है ,
ज़िन्दगी को और जीने के चाहत होती है ,
मिलता नही अपने मुताबिक किसी को
फिर क्यों अपने हिसाब से चलने की कशिश होती है?
लौट जाने को दिल करता है
हर उठते कदम पे जुम्बिश कम होती है ,
चाहत के लम्हों को बखूबी संभाला है हमने
फिर भी उनसे एक शिकायत सी रहती है,
आसमान में जो होती है साजिशे
वो सब क्या ज़मीन पे मुकम्मिल होती है ,
3 comments:
बहुत ही खुबसूरत लिखा है आपने !
कितना रहस्यमयी सवाल उठाया है आपने
आसमान में जो होती है साजिशे
वो सब क्या ज़मीन पे मुकम्मिल होती है ,.......
आपकी लेखनी चले और पढने वाला सोचने पर मजबूर न हो जाये ..ऐसा हो नहीं सकता .....
पूरी की पूरी रचना बेहतरीन है पर ये शेर बहुत ही अच्छा लगा
लौट जाने को दिल करता है
हर उठते कदम पे जुम्बिश कम होती है ,
लिखते रहिये हम पढने को बेताब रहेंगे
हमे पढने की अब चाहत होने लगी है
हमे लफ्जों से ये कैसी मुहब्बत होने लगी है
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