Saturday, September 4, 2010

तुम क्या हो







तुम क्या हो.......
नहीं मालूम...........
शायद एक हवा का झोंका हो ..........
जो आँखे बंद करजाता है ............
पल भर में उन पलकों में.............
रंग नए भर जाता है.............
बाहें खुद ही खुल जाती है..............
जो साँसों में गहरे उतर जाता है................
शायद ................
एक बदल हो जो बरखा की आस..........
दिल में जगा जाता है...........
सोच की ही उस सावन को............
मन हर्षित हो मुस्काता है.................
तपती जलती इस धरा को...............
ठंडी छाव दे जाता है.....................
दो रंगों की इस जीवन में एक
इन्द्रधनुष बन छा जाता है...................
शायद...................
एक चाँद हो.................
जो जीवन को समझाता है..............
घटते बढ़ते दर्द और खुशियों को बतलाता है...........
नित नए खोल में आ के..................
अधरों पे थिरक जाता है...........
पूरा छुप की फिर कल मिलने की..................
एक नयी आशा दे जाता है.........
शायद ............
कोई गीत हो.............
जो मन के तारों में ...............
धुन नयी दे जाता है..........................
भुला जैसे कोई प्रेम याद आ जाता है.......
खुशियों सा आ के मुस्कान सा सज जाता है............
ज़िन्दगी की हर मोड़ पे बहुत अपना सा नज़र आता है.................