Saturday, August 15, 2009

क्यों आज सब शांत था




क्यों आज सब कुछ बहुत शांत था
पिघलता हुआ आसमान था
हवा का भी मंद बहाव था
क्यों आज सब कुछ ...........

शायद आसमान उदास था ...
पाके कुछ खोने का अहसास था
बना के चेहरे रंग बिखेर दिए
रंगों का फीकापन आज कुछ ख़ास था
क्यों आज सब कुछ .......

शायद हवा ने छेडा उदासी भरा राग था
ले चली थी संग जिसे वो बिना सुर का साज़ था
भूल गई थी पहनना पैजेब आज
विरह का गीत उसके आस पास था
क्यों आज सब कुछ.........

शायद रात की खामोशी में कुछ होने को था
चाँद भी आज बादलों की ओ़त में था
पत्तों ने शाख से , चांदनी ने चाँद से पूछा अपना रिश्ता
आसमान अब जी भर के रोने को था
क्यों आज सब कुछ बहुत शांत था ?????

Monday, August 10, 2009

हम वफ़ा कर गए


आ कर उनकी बातों में
हम कुछ एसा कर गए ,
जो राह न थी अपनी
उस राह से गुज़र गए,
ज़ज्बातों की कीमत
अब क्या लगा पाओगे ,
ज़ज्बात मेरे सरे बाज़ार
कौडियों में बिक गए ,
बहुत संभाला था वो दरिया
न मालूम क्या तूफ़ान था
की हम उसी में बह गए ,
टूट के बिखर गया आशियाँ
खता बस इतनी थी की
हम वफ़ा कर गए .............
महफूज़ था वो फूल
चंद पन्नो के बीच सूख के ........
बिखर गया वो तिनकों में
क्योंकर हम उसे
गर्म हवाओं के हवाले कर गए .........................................