Friday, May 8, 2009

सब शांत हो गया है .....

शाम ढलते ही फ्हिर सब शांत हो गया ,

न निकले कोई दिन ये ख्याल सा हो गया ,

शब्द न निकले लबों से तुमाहरे पर,

आंखों का अपनापन भी न जाने कहाँ खो गया ,

ढूँढा बहुत अपने अंदर , हर तरफ़

पर न जाने वो भरोसा कहाँ खो गया ,

इंकार भी तो नै किया तूमने

बस इकरार बदहवास हो गया,

पता नही क्या रिश्ता था ,

न मालूम कहाँ क्या खो गया ,

जब कभी आएगी याद और आंख भर जायेगी,

हम समझ लेंगे की ज़िन्दगी को हमने भी थोड़ा बहुत जी लिया .